मेरी कहानी संग्रह की पुस्तक " माफ़ी तथा अन्य कहानियाँ " से एक कहानी
तपस्या भाग (१)
“ पापा कल
मुझे जल्दी जाना है ,जल्दी सोना पड़ेगा
,
आज नौ बजे तक खाना खा लेंगे ?” “ हाँ हाँ …” अनमयस्क होकर बोले मिस्टर शर्मा ,मन
ही मन सोचा उन्होंने शायद कल की बात से अब तक नाराज है . वाणी में भरसक मिठास घोलते हुए कहा
“ बेटा . ....” “ पापा आज मैं लेक्चर सुनने के मूड में
बिलकुल नहीं हूँ , मेरा सर फटा जा रहा है . कल भी ठीक से सो नहीं पाई .”
चाय लोगी मैं बना दूँ ? “आप बनायेंगे चाय ? मुझे शर्म नहीं आएगी ?" “ क्यों
इसमें शर्म की क्या बात है ? पूरी
जिन्दगी मैं ही तुम्हे बनाकर खिलाता
पिलाता आया हूँ “न ?”. “
पापा बच्ची नहीं रही अब मैं .”
कहा और मुड़ कर चली
लगी .
और
पापा सोचने लगे यही बात मैंने कल कही तो इतना बड़ा हँगामा खड़ा कर दिया इसने . अरे बेटी के बड़ी होने पर बाप को तो शादी की चिंता सताएगी न ,ऐसा
क्या अजूबा कह दिया था उन्होंने पर ....
कुछ कहना चाहते थे शायद पर चुप रहे . उन्हें लगा उनकी बात समझ नहीं पाती है नन्ही या नन्ही की बात वे नहीं समझ पाते हैं ,
बाप
बेटी के बीच का फासला बढ़ता जाता है . अपनी ओर से की गई उनकी हर कोशिश बेटी को उनसे
और दूर कर देती है .पापा जानते हैं नन्ही अपने कमरे में जाएगी
.
भड़ाम से दरवाजा बंद करेगी और घंटों इन्टरनेट
पर बैठी यों ही टाइम पास करती रहेगी पर पापा के लिए समय नहीं है उसके पास .
उनकी इच्छा हुई दरवाजा खोल कर उसके कमरे में
जाएँ और अधिकार से बोले “ नन्ही एक कप चाय
बना दो.” पर वह अधिकार जाने कहाँ खो गया . नन्ही बड़ी
हो गई और पापा छोटे होते जा रहे हैं .
एक दिन पापा यों ही लाड से नन्ही के लिए आइसक्रीम ले आये एवं सटे कमरे को धकेल कर पुकारा - नन्ही ले तेरी मनपसंद आइसक्रीम ’ क्या सोचा था उन्होंने ? बचपन की तरह नन्ही कूद कर आएगी और पापा के हाथ से आइसक्रीम लेती हुई कहेगी “ पापा यू आर सो नाइस , आई लव यू पापा .” और फिर खाने में तल्लीन हो जायेगी ? और वे बेटी को खुश होते देख तृप्त होते रहेंगे और अपने पर गर्व करते रहेंगे कि माँ बाप दोनों की जिम्मेदारी बखूबी निभा रहे है ? शायद यही सोचा हो “ ले बेटा खा ले .” प्यार से कहा था उन्होंने .
“ पापा आप जानते हैं न कितना पैसा मैं खर्च करती हूँ दुबले होने के लिए ? और इसमें कितना कैलोरी होता है पता भी है ? पर आपको क्या पता होगा ? पता होता तो ठूस ठूस कर खिला खिला कर हमें फूला थोड़े ही न दिए होते ......” गजब सा मुहँ बना लिया उसने पापा की आँखे नम होने लगी पर उसे इसका क्या भान ? “ अब आप ही बैठ कर खाइए .” “ बेटा थोड़ा सा तो खा ले .” एक आखिरी कोशिश करनी चाही “ पापा अब आप इमोसनल ब्लैकमेल मत कीजिये, अगर थोड़ा सा भी खाऊँगी तो रात का खाना नहीं खाऊँगी .” पापा हाथ में आइसक्रीम लिए हुए कुछ देर असमंजस में खड़े रहे फिर अपने कमरे में चले गए . इच्छा हुई जाकर डस्ट बीन में डाल दें पर पर डर लगा कहीं नन्ही ने देख लिया तो कहने से बाज नहीं आएगी “ इतना मेहनत से मैं कमाती हूँ और आप इस तरह से ...” और पापा धीरे धीरे चुपचाप किसी तरह आइसक्रीम गले से नीचे निकालते गए .
एक दिन पापा यों ही लाड से नन्ही के लिए आइसक्रीम ले आये एवं सटे कमरे को धकेल कर पुकारा - नन्ही ले तेरी मनपसंद आइसक्रीम ’ क्या सोचा था उन्होंने ? बचपन की तरह नन्ही कूद कर आएगी और पापा के हाथ से आइसक्रीम लेती हुई कहेगी “ पापा यू आर सो नाइस , आई लव यू पापा .” और फिर खाने में तल्लीन हो जायेगी ? और वे बेटी को खुश होते देख तृप्त होते रहेंगे और अपने पर गर्व करते रहेंगे कि माँ बाप दोनों की जिम्मेदारी बखूबी निभा रहे है ? शायद यही सोचा हो “ ले बेटा खा ले .” प्यार से कहा था उन्होंने .
“ पापा आप जानते हैं न कितना पैसा मैं खर्च करती हूँ दुबले होने के लिए ? और इसमें कितना कैलोरी होता है पता भी है ? पर आपको क्या पता होगा ? पता होता तो ठूस ठूस कर खिला खिला कर हमें फूला थोड़े ही न दिए होते ......” गजब सा मुहँ बना लिया उसने पापा की आँखे नम होने लगी पर उसे इसका क्या भान ? “ अब आप ही बैठ कर खाइए .” “ बेटा थोड़ा सा तो खा ले .” एक आखिरी कोशिश करनी चाही “ पापा अब आप इमोसनल ब्लैकमेल मत कीजिये, अगर थोड़ा सा भी खाऊँगी तो रात का खाना नहीं खाऊँगी .” पापा हाथ में आइसक्रीम लिए हुए कुछ देर असमंजस में खड़े रहे फिर अपने कमरे में चले गए . इच्छा हुई जाकर डस्ट बीन में डाल दें पर पर डर लगा कहीं नन्ही ने देख लिया तो कहने से बाज नहीं आएगी “ इतना मेहनत से मैं कमाती हूँ और आप इस तरह से ...” और पापा धीरे धीरे चुपचाप किसी तरह आइसक्रीम गले से नीचे निकालते गए .
थोड़ी
देर बाद कालबेल की घंटी बजी पापा जाकर नन्ही को बता आये “ बाहर कोई तुम्हे पूछ रहा
है .”
“ अच्छा आ गया वह, ठीक है ,पापा आप प्लीज थोड़ी देर
यहीं बैठिये , आफिसिअल बातें करनी है , आपके
होने से शायद वह .......” .
“ हाँ ठीक है मैं यही बैठ कर टीवी
देख लूँगा .."
दरअसल
पापा का कमरा और बैठक बिलकुल सटा है , बीच
में कोई दरवाजा नहीं है बस मोटा सा परदा लगा है , जिससे बाहर
बैठा व्यक्ति अंदर देख तो नहीं सकता है पर आवाजें पूरी तरह सुनी जा सकती है ,नन्ही
का कमरा काफी अंदर जाकर है .
, कहने को तो उन्होंने कह दिया पर सोचने लगे, कैसा जमाना आ गया है या
फिर उन्होंने बेटी की परवरिश ही गलत तरीके
से की है या फिर बेटी को अपनी हैसीयत से ज्यादा ऊँचे सपने दिखा दियें है कि उन
सपनो को पूरा करने के अलावा नन्ही के मष्तिष्क में और कोई बात आती ही नहीं . देश
के गौरवमय इंस्टिटयूट आई आई टी से इंजिनीअरिंग की
डिग्री लेकर बहुत अच्छी कंपनी में
कार्यरत है , बहुत गर्व होता है पापा को अपनी बच्ची पर . पास पड़ोस नाते रिश्तेदारों सभी के
बीच उनकी इज्जत काफी बढ़ी है . जिसे देखो वही कहता है
बच्चे को पालना कोई इनसे सीखे. बचपन से राजकुमारी की तरह पाला और अब पढ़ा
लिखा कर इस लायक कर दिया कि जिंदगी भर उसे किसी का मोहताज नहीं होना पड़ेगा . अपने पैरों पर इस तरह से खड़ा किया कि अच्छे
अच्छों के कान काटती है . कईयों को उनसे रश्क भी होता है . शादी के लिए एक से एक रिश्ते चल कर उनके आस आते हैं पर....पापा
को लगता है कि घर में उनकी इज्जत कम हो गई है . नहीं नहीं कम नहीं , बिल्कुल
समाप्त हो गई है ,नन्ही के मन में पापा के लिए आदर शायद शून्य से भी नीचे है ,प्यार
...पता नहीं ..पापा ने फट फट कर चैनल बदलना शुरू किया शायद अपनी सोच से उबरने के
लिए ,पर किसी कार्यक्रम में उनका मन नहीं लगा .मन हुआ नन्ही से माफ़ी मांग लें कल
की बात के लिए , मगर कल उन्होंने वैसा कहा ही क्या था ?
“ पापा चाय पीयेंगे ?” “
चला गया वह ?” “ हाँ चला गया ,बहुत ही बेबकूफ है ,नौकरी जाते जाते बची है पर अकड़ जाती ही
नहीं है शैलजा याद है न उसका भाई है , पर अब्बल दर्जे का मूर्ख है .छोडिये इन
बातों को ." “ बना रही है क्या ?" “ हाँ सर दर्द हो रहा है .”
“ हाँ बना ले , चाय पीकर मैं तेरे सर में बाम लगा दूँगा या तू बैठ मैं ही बना देता हूँ .” “ पापा अब आप काम करते हैं , तो मुझे खराब लगता है . क्या करूँ मैं ?" “ पर मैं तो दिन भर बैठा रहता हूँ न ?" “ तो क्या हुआ ? अब आपके आराम करने के दिन हैं न .कितना काम किया है जिन्दगी भर आपने ?” “ अच्छा ठीक है ,बना ले.” कहा पापा ने
“ हाँ बना ले , चाय पीकर मैं तेरे सर में बाम लगा दूँगा या तू बैठ मैं ही बना देता हूँ .” “ पापा अब आप काम करते हैं , तो मुझे खराब लगता है . क्या करूँ मैं ?" “ पर मैं तो दिन भर बैठा रहता हूँ न ?" “ तो क्या हुआ ? अब आपके आराम करने के दिन हैं न .कितना काम किया है जिन्दगी भर आपने ?” “ अच्छा ठीक है ,बना ले.” कहा पापा ने
चाय पीते पीते कहा नन्ही ने “ पापा आई ऍम साँरी , पता नहीं कल क्यों मैंने
इतना रियेक्ट किया ? जाने क्या हो जाता है
मुझे ? आपने तो कोई ऐसी बात नहीं कही थी
.मैं दिन भर सोचती रही ,क्यों मुझे बेकार में इतना गुस्सा आ गया ? बहुत खराब लग
रहा था मुझे .”
“ कोई बात नहीं, दिन का फेर होता है कभी कभी , हो जाता है
, तू बात को दिल से निकाल दे.” “ आप
गुस्सा तो नहीं है न ?” “
ना रे तुम से क्या मैं नाराज हो सकता हूँ ?" “ फिर आप इतने दुखी दुखी क्यों लग रहे हैं ?"
अपने को भरसक खुश दिखाने की कोशिश करते हुए कहा पापा ने “ नहीं असल में कल रात सो नहीं पाया न ठीक से शायद इसी वजह से .. ..”. “ पापा एक बार फिर से सारी , मम्मा वाली जो बात मैंने कही उसके लिए , मैं जानती हूँ वह बात मुझे नहीं कहनी चाहिए थी ," “ जाने दे जा जाकर बाम ले आ .” नन्ही खाली कप लेकर चली गई और पापा सोचने लगे शायद यही बात है , जो उन्हें कल से खाए जा रही है . सच्ची बात कड़वी लगती है और यह बात उन्हें अपनी बेटी के मुँह से सुननी पड़ेगी इसकी तो कल्पना भी नहीं की थी उन्होंने . आज तक किसी की बात उन्हें इतनी नहीं चुभी थी . शायद दर्द भी सबसे ज्यादा अपने ही देते हैं .
अपने को भरसक खुश दिखाने की कोशिश करते हुए कहा पापा ने “ नहीं असल में कल रात सो नहीं पाया न ठीक से शायद इसी वजह से .. ..”. “ पापा एक बार फिर से सारी , मम्मा वाली जो बात मैंने कही उसके लिए , मैं जानती हूँ वह बात मुझे नहीं कहनी चाहिए थी ," “ जाने दे जा जाकर बाम ले आ .” नन्ही खाली कप लेकर चली गई और पापा सोचने लगे शायद यही बात है , जो उन्हें कल से खाए जा रही है . सच्ची बात कड़वी लगती है और यह बात उन्हें अपनी बेटी के मुँह से सुननी पड़ेगी इसकी तो कल्पना भी नहीं की थी उन्होंने . आज तक किसी की बात उन्हें इतनी नहीं चुभी थी . शायद दर्द भी सबसे ज्यादा अपने ही देते हैं .
अचानक तेईस वर्ष की युवती बच्ची बन गई . पापा की गोद में सर रखकर आखें मूँद लिया उसने . पापा बाम
लगाने लगे और सोचने लगे कितनी
प्यारी है उनकी बिटिया , कितनी मासूम , किस तरह जूड़ी है वह उनसे भावात्मक रूप से . दूर
जाती हुई बेटी अब बहुत पास आने लगी , बिलकुल
पास, उनका गुस्सा दुःख , आक्रोश सब कर्पूर की तरह उड़ गया . पर दुनियादारी कब समझेगी ? और पढ़ना है इसे,
एम बी ए करना है ,अरे शादी कर लो , फिर क्या है ? पढ़ती रहना जब तक जी चाहे और वे मन ही मन जोड़ने लगे अगर अगले
वर्ष कहीं एम बी ए में हो गया तब भी तेईस और तीन छब्बीस ...कहाँ अच्छा लड़का मिलेगा
बिरादरी में ? कहीं इसकी जिंदगी में भी मेरी तरह वीरानी तो नहीं लिखी है ..कही बाप
बेटी की किस्मत एक जैसी तो नहीं ? “ उठ जा हो गया ,जा उधर मुझे कुछ काम करना है .” पापा
के स्वर में झल्लाहट, क्रोध , बेबसी सारे भाव एक साथ प्रतीत हुए .
नन्ही अवाक पापा की ओर देखने लगी अचानक क्या हो जाता है पापा को ? शायद इसी वजह से मम्मा ... नहीं ऐसा नहीं हो सकता . नन्ही को याद आया , हर वर्ष वे दोनों कानपुर जाते हैं नाना नानी के पास .कितना मान - सम्मान देते है वे पापा को ? उनकी पीठ पीछे भी कितनी तारीफ़ करते हैं पापा की . पिछली बार ही नाना ने कहा था “ तुम्हारे पापा? वे तो देव हैं देव . पिछले जन्म में जरुर हमने कुछ तप किये होंगे नहीं तो कौन एक बच्ची के सहारे अपनी पूरी जिंदगी काट देता है ?” दूसरे दिन नानी को अकेले देखकर नन्ही ने पूछा था “ लेकिन नानी कुछ तो बताओ आखिर हुआ क्या था ?” नानी बेचारी क्या बताती ? बात को छुपाते हुए उन्होंने कहा था “ छोटे मोटे झगड़े तो हर घर में हुआ करते हैं . उनकी वजह से कोई घर छोड़ कर चला जाता है क्या ? दूध मुँही बच्ची को छोड़ जाता है ? दामाद जी तो साक्षात देवता है .” और उन्हें याद आई सारी बात .उनकी अपनी बेटी की लिखी चिट्ठी ...किस तरह बतावें ? अपनी बेटी के चरित्र का बखिया अपने मुँह से कैसे उधेडे ? और उनके मुँहसे अनायास ही निकल गया “ बिट्टो हर इंसान को अपनी गलती की सजा भुगतनी पड़ती है सो तेरी माँ भी ...” नन्ही जानती है नानी ऐसे ही गोल मोल जवाब देकर उसे उलझा देगी पर अब वह बच्ची नहीं है “ पर उन्होंने किया क्या था ?” जोर देकर पूछा उसने "अरे छोटी मोटी घरेलू लड़ाई को कोई इतना तूल देता है क्या ? यही उसकी सबसे बड़ी गलती थी .”, नहीं , मैं जानना चाहती हूँ,पूरी बात क्योंकि ऐसा तो नहीं कि ममी की तरह मुझमे भी कोई खोट है , पापा कहते है , मैं बहुत जिद्दी हूँ , कही मेरा घर भी तो नहीं टूट जायगा ?”
नानी को एक पल के लिए लगा कि बिट्टो बड़ी हो गई है ओर उसे जानने का हक है पर उन्होंने अपने को संयत किया . नहीं क्या सोचेगी वह अपनी माँ के बारे में ? और उनकी आँखों के सामने नुपुर का चेहरा घूम गया , चंचल शोख आँखे जिनमे हमेशा लक्ष्य तक पहुँचने की जल्दी होती थी , पता नहीं कहाँ किस हालमें होगी , उन्हें पता भी नहीं चला कब ओर कैसे उनके नेत्र गीले हो गए . “ तू पापा से ही क्यों नहीं पूछ लेती है ? भरे गले से कहा उन्होंने “ पता नहीं नानी पर कुछ है जो मुझे पापा से पूछने से रोक लेता है . मुझे लगता है कहीं न कहीं मैं भी माँ जैसी हूँ और पापा कहीं मुझसे भी नाराज न हो जाएँ ?” पापा के आ जाने से बातों का क्रम टूट गया नानी आश्वस्त हुई ,नन्ही झल्लाकर चुप हो गई .
क्रमशः
नन्ही अवाक पापा की ओर देखने लगी अचानक क्या हो जाता है पापा को ? शायद इसी वजह से मम्मा ... नहीं ऐसा नहीं हो सकता . नन्ही को याद आया , हर वर्ष वे दोनों कानपुर जाते हैं नाना नानी के पास .कितना मान - सम्मान देते है वे पापा को ? उनकी पीठ पीछे भी कितनी तारीफ़ करते हैं पापा की . पिछली बार ही नाना ने कहा था “ तुम्हारे पापा? वे तो देव हैं देव . पिछले जन्म में जरुर हमने कुछ तप किये होंगे नहीं तो कौन एक बच्ची के सहारे अपनी पूरी जिंदगी काट देता है ?” दूसरे दिन नानी को अकेले देखकर नन्ही ने पूछा था “ लेकिन नानी कुछ तो बताओ आखिर हुआ क्या था ?” नानी बेचारी क्या बताती ? बात को छुपाते हुए उन्होंने कहा था “ छोटे मोटे झगड़े तो हर घर में हुआ करते हैं . उनकी वजह से कोई घर छोड़ कर चला जाता है क्या ? दूध मुँही बच्ची को छोड़ जाता है ? दामाद जी तो साक्षात देवता है .” और उन्हें याद आई सारी बात .उनकी अपनी बेटी की लिखी चिट्ठी ...किस तरह बतावें ? अपनी बेटी के चरित्र का बखिया अपने मुँह से कैसे उधेडे ? और उनके मुँहसे अनायास ही निकल गया “ बिट्टो हर इंसान को अपनी गलती की सजा भुगतनी पड़ती है सो तेरी माँ भी ...” नन्ही जानती है नानी ऐसे ही गोल मोल जवाब देकर उसे उलझा देगी पर अब वह बच्ची नहीं है “ पर उन्होंने किया क्या था ?” जोर देकर पूछा उसने "अरे छोटी मोटी घरेलू लड़ाई को कोई इतना तूल देता है क्या ? यही उसकी सबसे बड़ी गलती थी .”, नहीं , मैं जानना चाहती हूँ,पूरी बात क्योंकि ऐसा तो नहीं कि ममी की तरह मुझमे भी कोई खोट है , पापा कहते है , मैं बहुत जिद्दी हूँ , कही मेरा घर भी तो नहीं टूट जायगा ?”
नानी को एक पल के लिए लगा कि बिट्टो बड़ी हो गई है ओर उसे जानने का हक है पर उन्होंने अपने को संयत किया . नहीं क्या सोचेगी वह अपनी माँ के बारे में ? और उनकी आँखों के सामने नुपुर का चेहरा घूम गया , चंचल शोख आँखे जिनमे हमेशा लक्ष्य तक पहुँचने की जल्दी होती थी , पता नहीं कहाँ किस हालमें होगी , उन्हें पता भी नहीं चला कब ओर कैसे उनके नेत्र गीले हो गए . “ तू पापा से ही क्यों नहीं पूछ लेती है ? भरे गले से कहा उन्होंने “ पता नहीं नानी पर कुछ है जो मुझे पापा से पूछने से रोक लेता है . मुझे लगता है कहीं न कहीं मैं भी माँ जैसी हूँ और पापा कहीं मुझसे भी नाराज न हो जाएँ ?” पापा के आ जाने से बातों का क्रम टूट गया नानी आश्वस्त हुई ,नन्ही झल्लाकर चुप हो गई .
क्रमशः
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