प्रतिशोध (भाग १)
“
अंजलि के लिए कोई लड़का मिला ?” पूछा मोना ने “ नहीं , कहाँ ? जहाँ भी बात चलती है , कद को लेकर टूट जाती है .” निराश स्वर से कहा मामी ने थोड़ी देर रूककर कहा मामी ने –“ मोना मैंने
सुना है कि मारीशश में भी कुछ लड़के भारतीय लड़की से शादी करना चाहते हैं . तू ही देख
न कोई .” “ मामी
वहाँ अधिकाँश शादियाँ तो लड़के लड़की आपस में ही तय कर लेते हैं , इक्का दुक्का ही माता
पिता तय करते हैं .”
“ हाँ सो तो है ही,
अब तो भारत में भी ... लेकिन सरला की बेटी
की तो एरेंज ही हुई न, तुम्हारी भी तो ..... हाँ
अगर तू नहीं पड़ना चाहती है तो कोई बात
नहीं , देखा जायगा कुछ न कुछ तो उसकी
किस्मत में भी लिखा ही होगा ऊपर वाले ने ’’.
उनकी
नाराजगी से मोना का सारा
उत्साह ठंढा पड़ गया , कितने सपने देखती है वह हर बार भारत आने के पहले , पर ? “ क्या सोचने लगी तू ? मैं तो ऐसे ही कह रही थी . ध्यान में रखना बस और वह शर्मा जी की बेटी से मिलती है ?
क्या हाल है उसके ?” “ कौन रानू ? हाँ मिलती तो हूँ , मामी वह खुश
नहीं है वहाँ पर .” भौचंक हो मामी मोना को
देखने लगी
“ क्यों क्या परेशानी है उसे वहाँ पर ? इतना
अच्छा- भला पति है , घर परिवार है , सुना है काफी बड़ा घर है उसका ?” “ हाँ सो सब तो है पर मामी वह भारत में रहना चाहती है , वहाँ उसका दिल
नहीं लगता है , वह चाहती है कि उसका पति उसके साथ यहाँ आकर रहे ,जिसके लिए सुरेश तैयार नहीं है .” “ पागल तो नहीं हो गई लड़की वह कैसे अपने माँ -
बाप , भाई – बहन , सारे रिश्तेदार यहाँ तक
कि अपने देश तक को छोड़ कर यहाँ आ जाए ?” “ यही बात तो रानू भी कहती है कि वह कैसे अपना सब कुछ छोडकर
......?”
मामी कुछ सोचने लगी फिर भावुक होकर पूछा ‘ तुझे
तो मन लगता है न बेटा ?” “ मेरी बात अलग है , आज कल की लड़कियाँ बराबरी चाहती है .” टॉपिक बदलते हुए पूछा उसने ‘अंजलि कितने
बजे आएगी ?’
“ समय
तो हो ही गया है आती ही होगी, इतनी बार नकारात्मक उत्तर सुनकर दिल टूट गया है उसका,
अब
तो शादी के नाम से ही उसे जैसे चिढ़ हो गई है. तेरे यहाँ रहने तक दिल बहला रहेगा उसका , हमसे
तो खुलकर बात भी नहीं करती है , अच्छा हो उस बेचारी सरला का, कि स्कूल में नौकरी
दिलवादी
.
कम से कम व्यस्त तो रहती है .” “ मामी एक मिनट
…
तुम्हे अंजलि की उम्र तो याद है न ?”
“ लो सुन लो कोई इस पगली की बात, तुम्हे याद है
न कि मैं उसकी कौन हूँ ?”
तभी मामा जी ने कमरे में प्रवेश किया उनके
दोनों हाथों में बड़े बड़े थैले थे ,अप्पू ने झट से दोनों थैले ले लिए और अन्दर चली
गई सब्जियाँ निकालते वक्त चार बड़े बड़े फूलगोभी देख उसका मन भर आया
.
उसे याद आया कल जब मारीशश के खाने पीने की बात हो रही थी
,
तब उसने कहा था कि वहाँ के फूलगोभी में बिलकुल भी स्वाद नहीं होता है
. जब
लौटी तो उसके हाथ में पानी का ग्लास था . पानी का ग्लास उसके हाथों से लेते
हुए कहा मामा ने ‘ मोना
आज अपने हाथों से आलू गोभी की सब्जी बनाना
,
कितने दिन हो गए तुम्हारे हाथ का खाना खाए . अंजू
को भी बहुत पसंद है .”
“ ठीक है मामा जी ,
अच्छा एक बात बताइए मामी इतनी परेशान
क्यों है अंजू की शादी को लेकर ? अभी उसकी
ऐसी क्या उम्र है ? चौबीस
पच्चीस से पहले तो आजकल किसी की शादी नहीं होती है .”
“ हाँ सो तो है लेकिन .. ...”
कुछ सोचकर वे चुप हो गए थोड़ी देर की
ख़ामोशी के बाद कहा उन्होंने “ और तू बता
क्या सब करती है वहाँ ? देश तो बड़ा सुन्दर
है . जानती हो शालिनी एक फ्रेंच लेखक ने क्या लिखा है ? हाँ जानती हूँ कहा मामी ने .
मामा अचरज से मामी की तरफ देखने लगे और कहा - पर तुम तो हिंदी छोड़कर कुछ
पढ़ती नहीं फिर कैसे ? अच्छा बताओ तब क्या
लिखा है?
“ यही कि ईश्वर ने पहले मारीशश की रचना की . फिर उन्हें यह जगह इतनी अच्छी लगी कि उन्होंने
अपने रहने के लिए इस जगह की नक़ल कर स्वर्ग बनाई . यही कहने जा रहे थे न ?” “ हाँ बिलकुल सही कहा .पर तुम्हे .....”
“ बात को काट कर बड़े गर्व से कहा मामी ने - अरे
मेरी बेटी अब विदेश में रहती है .” पता नहीं क्या था उनकी बातों
में कि मोना को बड़ा अच्छा लगा , थोड़ी देर पहले वाली कड़वाहट मिट गई .
“अरे मोना क्या सोचने लगी ? मामा थे .”
" कुछ नहीं ." “ अच्छा , हिंदी तो वहाँ सभी को आती होगी ?” “ नहीं ,
नहीं, ऐसी बात नहीं है सिर्फ हिंदुओं को ही हिंदी आती है , वहाँ हिन्दू शब्द धर्म
का नहीं हिंदी प्रदेश से गये लोगों के लिए रूढ़ हो गया है .उनमे भी कईयों को काम
चलाने लायक ही आती है, जिनमे से कुछ समझ तो सकते हैं पर बोल नहीं सकते हैं .” “ तब तो
तुम्हे दिक्कत होती होगी ?" “ हाँ बाहर अगर अकेली होती हूँ तो
अंग्रेजी से काम चलाना पड़ता है ." “ सभी लोग फ्रेंच बोलते हैं ?”
“ नहीं
वहाँ की आम भाषा क्रेओल है , असल में क्रेओल फ्रेंच का अपभ्रंश है जिसमे
कुछ शब्द चायनीज और कुछ शब्द भोजपुरी के
मिल गए हैं ,” “ तब तो
तुम्हे क्रेओल सीखना पड़ेगा ." “ नहीं अगर फ्रेंच सीख जाती हूँ तो
ज्यादा अच्छा है .काम भी चल जायगा और एक भाषा भी सीख जाऊँगी .” " तब तो बढ़िया है सीख लो फ्रेंच .”
“ इतना आसान थोड़े न है ,बहुत ही मुश्किल है , कई बार कोशिश की है मैंने
, पर कई शब्द तो हम उच्चरित ही नहीं कर पाते हैं और व्याकरण भी काफी टफ है ,फिर भी
थोडा बहुत तो सीख ही गई हूँ .”
मोना का फोन बजने लगा “ देखो शायद शतीश का होगा .” मोना फोन उठाकर हैलो बोलती हुई अन्दर चली गई काफी देर
के बाद वह लौट कर आई बहुत खुश थी वह ‘ मामी शतीश बता रहा था उसकी नजर में है एक लड़का - उसका
ममेरा भाई लगता है , स्कूल में पढाता है ,
कहूँ उसे बात करने ?" “ क्या स्कूल टीचर
?" मामा- मामी अचरज से मोना को देख रहे थे जैसे
उसने कोई अजीबोगरीब बात कह दी हो .
“ मामा वहाँ भारत जैसा नहीं है. एक तो टीचरों को पैसे बहुत
मिलते हैं वहाँ और समाज में उनकी इज्जत भी
बहुत है . पता है उनको आधे दाम में गाडी मिलती है . वर्ष में एक बार विदेश जाने के लिए एल टी सी मिलता है . सोचो अंजलि हर वर्ष फ्री में भारत आ जा सकेगी . तुम्हे लगेगा ही नहीं कि बेटी विदेश में रहती
है .” “ हाँ
देखेंगे ...” बात टालने के जैसे कहा मामा ने “ मामा एक बात पूछूं ?”
“ " हाँ पूछ.” कई दिनों से मोना की जुबान पर बात आते आते रुक जाती थी पर आज उसने
पूछ ही लिया . सीधे सपाट शब्दों में “पापा की तबीयत क्या बहुत ख़राब है ?” “ हाँ शायद बहुत ज्यादा; कम उम्मीद है बचने की
पर तुमसे किसने कहा ?” “ चुड़ैल
का फोन आया था .”
“ तेरा नंबर कहाँ से मिला?”
“
मालूम नहीं ,कह रही थी एक बार आकर मिल जाओ
माफ़ी माँगना चाहते है . तुमसे ..” “ तुमसे ? क्या कहा तुमने ?”
“ मैंने कहा ऊपर जा ही रहे है जाकर माँ से माफ़ी मांग लेने . मैं तो इस जन्म में माफ़ नहीं कर सकती, न ही
उनका चेहरा देखना चाहती हूँ .” “ मैं गया था एक दिन .”बहुत धीमे से कहा
उन्होंने . “ पर क्यों मामा जी ?”
“ बेटा एक बात कहूँ ? तू
भी जाकर मिल आ एक दिन. बस यही एक उनकी
आखिरी ख्वाहिस है ,”
मामा जी का फोन बजने लगा वे फोन पर बात करने
लगे और मोना सोचने लगी
…..
लेकिन क्यों करे वह उनकी इच्छा पूरी ? बहुत
छोटी थी वह पर शायद माँ का दर्द पूरी तरह समझती थी . कितनी खुशहाल थी छोटी सी उसकी दुनिया और उसे
पोपली मुहँ वाली दादी का चेहरा याद आ गया .कितनी कोशिश की थी उन्होंने अपने बेटे
को समझाने की पर उनपर तो भूत सवार था उस
चुड़ैल का . याद है उसे मम्मी पापा का जोर
जोर से पागलों की भाँति चीखना चिल्लाना ,दादी का उससे भी जोर से उसे ह्रदय से लगा
कर छाती में भींच लेना मानो इस तरह वे
बच्ची को इस सब से दूर रख पायेगी ,एक दिन बच्ची ने पूछ ही लिया - दादी ये मिताली
कौन है ?” “ चुड़ैल है. चल सो जा .” और दूसरे दिन सुबह उसने पापा से पूछ
लिया - पापा चुड़ैल क्या होता है ?" “ कुछ
नहीं होता है भूत चुड़ैल कौन तुम्हे डराता है ?” बच्ची का आक्रोश निकला था पापा पर - तुम सब झूठ बोलते हो,
मुझे सब मालूम है. मिताली है चुड़ैल.” और एक जोरदार पुरुष की हथेली का
चांटा पड़ा बच्ची के गाल पर . सर घूम गया
बच्ची का गिरने ही वाली थी कि दादी ने संभाल
लिया . माँ की सूजी लाल आँखों में
मानो रक्त उतर आया हो , धटना स्थल
पर न होते हुए भी मानो उन्होंने सब कुछ देख लिया हो . लगभग उसे और अपने आप को
घसीटती हुई वे मामा के यहाँ पहुँची . “
क्या हुआ नीलू ?” घबडा कर पूछा मामा ने “ भैया
अब और मैं बर्दाश्त नहीं कर सकती . मुझे माफ़ कर ,दो
बहुत कोशिश की मैंने निभाने की अपनी बच्ची की खातिर पर अब तो…...”
बाकी के शब्द आँसुओ में बह गए . उसके
गाल पर पड़े निशान को देख मामा गुस्से में पता नहीं क्या क्या बकने लगे . देख लूँगा
मैं उसके सारे घरवालों को अन्दर कर दूँगा
, फूल सी बच्ची पर .... मामी जल्दी से पानी का ग्लास लेकर आईं उसे पानी पिलाकर अंदर
कमरे में ले गईं ठीक उसी तरह जैसे दादी पापा के देर से घर आने पर उसे अपने कमरे
में ले जाकर दरवाजा अन्दर से बंद कर लेती
थी ,उसके बाद कोई मलहम उसके गालों पर
लगाया . चोट लगने के बाद इतना कुछ हो गया
था कि वह अपना दर्द भूल गई थी . अब फिर से उसे याद आ गया और वह रोने लगी .
मामी ने उससे बड़े प्यार से कहा “
मेरी मोना तो बहादुर बच्ची है , छोटी छोटी
बात में थोड़ी न रोती है और देखो अंजलि सो रही है अगर वह उठ जायेगी तो तुझे ही तो
संभालना पड़ेगा .”
और मोना को लगा कि वह बड़ी हो गई है बहुत बड़ी और नितांत
अकेली , कोई नहीं है उसके साथ पता नहीं कब तक रोती रही मन ही मन . नन्ही अंजू उठ कर रोने लगी . उसने मामी को आवाज लगाईं लेकिन
कई बार आवाज देने पर जब कोई नहीं आया तब उसने अंजू को गोद में उठा लिया और
चुप कराने की कोशिश करने लगी ... क्रमशः