“
मोना गुप्ता जी का फोन था वे लोग शाम को
आयेंगे तुमसे मिलने .” “ ठीक है मामाजी .” शाम को मामाजी समोसे ,
नमकीन
,
मिठाइयाँ वगैरह लाकर रख दिए थे .मोना उन चीजों को निकलकर रसोईघर में सहेज रही थी अंजू
वहीं खड़ी थी कुछ सोचती हुई
“ अंजू वहाँ मिठाइयाँ अच्छी नहीं मिलती हैं तरह तरह के केक पेस्ट्री ही
ज्यादा मिलते हैं .” कहा मोना ने “ जीजी वहाँ हिंदी मैगजीन तो नहीं मिलता होगा
?” “ क्यों क्या मास्टर साहब पसंद हैं तुम्हे ?” “
मजाक छोडो न बताओ न , अच्छा पैसे कितने
मिलते होंगे ?”
“ मेरे ख्याल से तीस चालीस हजार तो मिलते ही होंगे.” “ जीजी तीस और चालीस में दस हजार का फर्क है वह
भी मारीशियन .”
“ देख मेरे जान पहचान में जितने भी
व्यक्ति स्कूल में पढाते हैं उन सब के पास
सुन्दर कार है , आलिशान घर है और उनके रहन सहन का
स्टैण्डर्ड भी काफी अच्छा है . हर वीकेंड पर घूमने जाते हैं , अच्छा खाते पीते हैं और क्या चाहिए ?” “ और उनलोगों का स्वभाव कैसा है ?” “ सीधे साधे लोग हैं . काफी अच्छा लड़का है .छोटा सा परिवार है उनका ; एक बहन है
आस्ट्रेलिया में रहती है . शादी हो गई है .” मामा नैपकिन लाना भूल गए थे सो वापस बाजार गए
थे , आते ही सीधे रसोई में घुस गए ‘ ये लो नैपकिन, कागज के प्लेट भी लेता आया हूँ
’’ मामी
ड्राइंग रूम ठीक करने में व्यस्त थी .
मामा ने उनसे पूछा ‘’चार बज गए चाय
मिलेगी क्या ?”
“ आपको
तो अपना समय इधर से उधर नहीं होना चाहिए ,थोडा रुको न सब आ जाएँ तो साथ ही पी
लेंगे ,”
“ ठीक है जैसी आपकी मर्जी लेकिन तब छह सात बज
जाएँगे .”
कुछ नहीं बोला मामी ने , सीधा रसोई
घर में गई एवं चाय की केतली चढ़ा दी “ मम्मी मैं बना देती हूँ तुम करो जो कर रही
हो .”कहा अंजू ने
मामी ख़ुशी ख़ुशी चली गई, “जीजी आप तो खुश हैं न वहाँ ?”
“ हाँ रे मैं तो बहुत खुश हूँ , तू
भी सोच कर देख ले फिर मैं मामा से बात करूँगी .”
“मैं
क्या सोचूँ ? तुम ही देख लो तुम बता रही थी मम्मी को कि रानू
खुश नहीं है वहाँ पर ?” “ उसे, वह तो पागल है ,उसे
तो हर बात में समस्या है .” “जैसे
?”
“
जैसे वहाँ पाँच बजे दूकानें बंद हो जाती है ,सारे दिन वर्षा होती रहती है अपनी भाषा में बात करने वाला कोई नहीं मिलता है
,बहुत ज्यादा शान्ति है आदि आदि ....”
असल में वह हमेशा नकारात्मक सोचती
रहती है . वैसे भी कुछ पाने के लिए कुछ खोना
भी पड़ता है . ये तो सच है न कि हम अपने
देश में नहीं रहते हैं . अपने देश के लिए
, अपने लोगों के लिए कभी कभी मन
उदास हो ही जाता है न .”
“ जीजी तुम्हे हमारी याद तो आती होगी न ?”
“ हाँ रे आती है , बहुत याद आती है
.”
“ अच्छा तुम बताओ मैं वहाँ खुश रहूँगी ?”
“ मेरी प्यारी बहना तू तो इतनी एड्ज्स्टिंग है कि तू तो कहीं भी खुश रहेगी
और वहाँ परेशानी की कोई बात है ही नहीं और
हाँ वहाँ हिंदी मैगजीन भी मिलती है ,जितनी चाहो उतनी .” “ तुम कहती हो वहाँ किसी को हिंदी नहीं आती है ?” “
ऐसा मैंने कब कहा ? मैंने तो ये कहा कि हिंदी में बात –चीत करने वाले वहाँ कम है
और नई पीढ़ी सिर्फ हिंदी पढ़ती भर है . क्योंकि
आम लोक चाल की भाषा क्रेओल ही है . लेकिन वहाँ कई लेखक कवि हैं ,कई सारी मैगजीन
निकलती है वहाँ से .”
“ मेरे घर में सभी लोग हिंदी ,भोजपुरी
अच्छी तरह बोलते हैं .”
“ और उनके यहाँ ?”
“ ओ अभी से उनके ? मौसी सास तो बोलती है बच्चों
को थोडा बहुत आता है .” मामी
के आने से दोनों चुप हो गईं .
रात को सोते समय अंजू ने कहा - जीजी तुम्हे पता
है फूफा जी बहुत बीमार हैं ? “हाँ कल चलेंगे देखने , तेरी भी तो छुट्टी है न ?”
“ मम्मी पापा को बताकर ?”
“हाँ मामा खुद ही कह रहे थे .” “ क्या ?” आश्चर्य से अंजू का मुँह खुला का खुला
रह गया .
दूसरे दिन दोपहर लगभग एक बजे वे अस्पताल पहुँची . अंजू की एक
सहेली मिल गई और वह वही रूककर उससे बातें करने लगी ,
शायद अन्दर जाना नहीं चाहती थी या चाहती थी कि मोना अकेली जाय मोना अकेली
गई अंदर . पापा को देखा उसने जो उसके लिए कभी थे ही नहीं या थे पर मोना ने उन्हें यह अधिकार कभी नहीं दिया . मामा
के घर कई कई अभाव थे पर पापा के ऐश्वर्य को उसने अपनी इच्छा से सर्वदा ठुकरा दिया
था , हाँ जब शादी के वक्त पापा ने उसकी माँ के सारे ज़ेवर मामी के हाथ रख दिये और मामी असमंजस में मोना का
मुँह देखने लगी तब बिना पापा की ओर देखे हुए कहा था उसने
“
ये तो माँ के हैं न रख लो .” और
बड़े जतन से उन गहनों के दो हिस्से किये थे एक अपने लिए और दूसरा अपनी छोटी बहना के लिए
लेकिन मामा नहीं माने .उन्होंने सारे गहने उसे दे दिए थे .
पापा का नाम सुनते ही उसका रक्त उबलने लगता था पर पता नहीं क्यों ?
आज वह शांत है बिल्कुल स्थिर और शायद खुश भी ,मालूम नहीं क्यों लेकिन उसे ऐसा लग
रहा है कि उसने मम्मा का बदला ले लिया है , पर पापा की यह दशा देखकर उसका दिल बैठा
जा रहा है और अब उन्हें माफ़ करने के लिए
तैयार है पापा ने उसे देखा ,हाथ के इशारे से पास बुलाया ,दोनों
हाथ जोड़ दिए बड़े आहिस्ते –आहिस्ते कहा
उन्होंने ‘ बेटा प्लीज मुझे माफ़ कर दो ’ “ छिः क्या कर रहे हैं आप मुझे पाप चढ़ेगा ,मैंने
भी तो कभी आप के साथ अच्छा नहीं किया माफ़ी
तो मुझे माँगनी चाहिए .” और वह उसी तरह
पापा का दोनों हाथ नीचे करके पकडे हुए फूट फूट कर रोने लगी .
पापा की आँखें भी नम थी उन्होंने
कहा “ न रो मेरी बच्ची ईश्वर तुम्हे सदा सुखी रखें
.” पास
रखे स्टूल पर बैठ गई मोना , सामने देखा
उसने ,वह औरत खड़ी थी दूर, आँखों में कृतज्ञता के भाव लिए ,जैसे बाप बेटी को अलग कर उसने बड़ी भूल की हो और विधि उसे
उसी की सजा दे रहा हो ,लेकिन अब पछताने से
क्या फायदा ?
मोना
को कभी की पढ़ी पंक्ति याद आ गई ‘ का वर्षा
जब कृषि सुखाने ?’ “ मन लगता है मारीशश में ?” पूछा पापा ने “ हाँ
लगता है .”
“ अच्छी जगह है . सुना है काफी सुंदर है . दामाद नहीं आये हैं ?”
“ नहीं वे बीस तारीख को आयेंगे .”
“ एक बार
ले आओगी ? दोनों को साथ आशीर्वाद देना चाहता हूँ .”
“ हाँ जरुर ले आऊंगी वे भी आपसे मिलना चाहते हैं .”
नम पुतलियों में जैसे चमक आ गई वे उठ कर बैठने लगे ,नर्स ने उन्हें मना किया वे फिर लेट गए .
रात को शतीश का फोन आया ‘ क्या बात है मोना बहुत खुश लग रही हो ?’ “हाँ
मामा राजी हैं .”
“ अच्छा , ये तो अच्छी बात है , तब तो
दोनों बहने यहीं रहोगी .”
“ पर तुम उनसे फ़ाइनल बात तो कर लो .”
“उनकी तरफ से बिलकुल पक्का है .”
काफी देर इधर उधर की बातें करने
के बाद कहा मोना ने ‘आज मैं पापा से मिलने
गई थी ’ “अच्छा कैसे हैं वे ?”
“ठीक तो नहीं है पर मुझे देखकर काफी खुश लग रहे थे.”
“अच्छा किया तुमने बहुत अच्छा किया
.”
“ वे तुमसे मिलना चाहते हैं ,
मिलोगे ?”
“ हाँ क्यों
नहीं आखिर वे ससुर हैं मेरे और मोना बडप्पन माफ़ी देने में है और उनके गलती की सजा
ईश्वर दे ही रहे हैं ,हम तुम तो माफ़ कर सकते हैं उन्हें और अब वे कितने दिन जियेंगे ?”
फोन रखने के बाद मोना को लगा उसके रोम रोम पुलक रहे हैं . लगभग दौड़ती हुई बैठक में गई ‘मामा मिठाई लाओ
मुहँ मीठा कराओ सबका. बात पक्की हो गई .” “
हाँ सच ?” मामी की आखों में खुशी के आँसू आ गए
“ पर मोना , उन्हें अंजू के कद के
बारे में बता दिया है न ?”पूछा मामी ने “
मामी तुम नाहक परेशान न हो . लड़के ने
हमारी अंजू को देखा है . शादी में वह भी
आया था .”
कहकर मोना अंदर गई और अपने आधे गहने लेकर आई . उन गहनों को
अंजू को देती हुई बोली - न न मना नहीं करना
. यह आशीर्वाद है मेरा , हाँ पुराने डिजाइन के अवश्य है . कल चलेंगे बदलवाकर नए डिजाइन के
ले लेंगे .
“ नहीं दीदी डिजाइन का क्या है ? वे तो आते जाते रहते हैं .
ये हमारी बुआ की निशानी है . हम इन्हें नहीं बदलेंगे . हम हमेशा इन्हें ज्यों के त्यों अपने पास रखेंगे.”
और उनके कष्टमय जीवन की याद से
सबकी आँखे भर आईं .